दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोई
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होए
दुःख में सुमिरन सब
सहज मिले सो दूध संग, माँगा मिला सो पानी
कह कबीर वह रक्त संग, जा में खेंचा तानी
दुःख में सुमिरन सब
बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलया कोई
जो दिल खो जा आपणा, मुझसे बुरा ना कोई
दुःख में सुमिरन सब
जहा दया तह धर्म हे, जहा लोभ तह पाप
जहा क्रोध तह काल हे, जहा क्षमा तह आप
दुःख में सुमिरन सब
माठी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोह
इक दिन ऐसा आयेगा, में रोंदुंगी तोह
दुःख में सुमिरन सब
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