जिसमे सूरत श्री माँ की न आये नज़र, अब मुझे ऐसा दर्पण नहीं चाहिए
गंध जिसमे भरी हो अहंकार की, वो दिखावे का टिका नहीं चाहिए
जिसमे सूरत श्री माँ की
छोड़कर इस ज़माने की रंगीनीया, आ गया हु में माँ तेरे दरबार पर
सिर्फ भक्ति से मतलब हे मेरे लिए, कोई दुनिया का बंधन नहीं चाहिए
जिसमे सूरत श्री माँ की
में जहा भी तुम्हे देखू आओ नज़र, मेरी आँखों को बक्शो माँ वो रौशनी
सिर्फ इसके सिवा और कुछ भी नहीं, कोई जीवन का साधन नहीं चाहिए
जिसमे सूरत श्री माँ की
मेने दरबार में तेरे छु के चरण, फैसला कर लिया हे समझ सोचकर
सत्य की खाक मिल जाए मेरे लिए , झुटी दुनिया का कंचन नहीं चाहिए
जिसमे सूरत श्री माँ की
जय श्री माताजी
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