सतगुरु पाए मोरे सब दुःख बिसरे, अंतर के पट खुल गयो री
ज्ञान की आग जली घट भीतर, कोटि कर्म सब जल गयो री
पांच चोर लुटते रात दिन, आप ही आप में नस गयो री
सतगुरु पाए मोरे सब दुःख बिसरे
बिन दीपक मारे भया उजाला, तिमिर कहा जाने नस गयो री
त्रिवेणी से मारे धार बहत हे, अस्ठ कमल दल खिल गयो री
सतगुरु पाए मोरे सब दुःख बिसरे
अडसठ तीरथ हे घट भीतर, आपस में सब मिल गयो री
कहत कबीर सूना भाई साधो, ज्योत में ज्योति मिल गयो री
सतगुरु पाए मोरे सब दुःख बिसरे
जय श्री माताजी
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