Monday, March 30, 2020

निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये - रविन्द्र जैन , हेमलता जी

सुबह का भूला ओ ओ  सुबह का भुला जो
शाम को लोटे तो भुला ना कहलाये
आ जा रे तोहे निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये
भटका हे तू ओ ओ भटका हे तू पापी नहीं हे, माँ ततो यही समझाए
आ जा रे तोहे निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये


मन से भुला दे मान अपमान, गत जीवन का मत कर ध्यान 
अंतर तेरा गुण रत्नों की खान, कर ले तू अपनी पहचान
सहज का हो ओ ओ सहज का हो 
जब उजियारा तो हर अँधियारा मिट जाए
आ जा रे तोहे निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये 

तुझमे तेरी जो संपत छुपी, उसपे कभी न दृष्टी पड़ी
सब कुछ स्वयं से पायेगा तू, अन्तर्मुखी यदि हो दो घडी
अपनी खोज में ओ ओ अपनी खोज में 
जो निकले वो, अपनी मंजिल पाए 
आ जा रे तोहे निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये 

माँ निर्मला अशरण की शरण, तारण हार हे उनके चरण 
कुण्डलिनी का जो होगा मिलन, होगा भविष्य का शुद्धिकरण 
माँ की शक्ति से ओ ओ  माँ की शक्ति से
सच्ची भक्ति से, क्यों न लाभ उठाये 
आ जा रे तोहे निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये 

बच्चो का हर दुःख माता सहे, हस्ती रहे और कुछ ना कहे 
उसके स्नेह्हिल नैनों से, ममता की गंगा जमुना बहे
वरदानो के ओ ओ वरदानो के 
मोती मैय्या दोनों हाथ लुटाये 
आ जा रे तोहे निर्मल माँ का पावन प्रेम बुलाये 
सुबह का भूला
                                                             जय श्री माताजी 




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