अपने दिल में सहज को बसाया करो
रचयता की तुम रचना रचाया करो
अपने दिल में सहज को
पहले ध्यान धरो, चित काबू करो
कुंडलिनी तुम अपनी जगाया करो
ठन्डे चेतन्य स्वयं बहाया करो
अपने दिल में सहज को
मूलाधार से खिली सस्त्रार पे खुली
निर्मलता से सुसूमना में बहती चली
आदिशक्ति को ऐसे उभारा करो
अपने दिल में सहज को
शुद्ध इच्छा करो साक्षी रूप धरो
भवसागर मोह का ऐसे पार करो
निरानंद का क्षितिज तुम पाया करो
अपने दिल में सहज को
आये संत कई उलझन बढती गयी
समझ पाए कोई न प्रभु या साईं
सच्चे साईं को स्सहज में पाया करो
अपने दिल में सहज को
जय श्री माताजी
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